/sootr/media/post_banners/76cfc386bdeab1667d84caad27fd4d017abb51d9de74d9e74a58f3972d662067.jpg)
संजय गुप्ता/ज्ञानेंद्र पटेल. INDORE. इंदौर सहकारिता विभाग जमीन के खेल के लिए काजल की कोठरी हो गई है और हर तरह का खेल यहां के अधिकारी करने में माहिर हैं। हर काम के लिए पैसे लगते-लगते हैं, इसकी पोल लोकायुक्त द्वारा बीते 2 साल में यहां से पकड़े गए 4 अधिकारियों के कारनामे से खुल रही है। इसमें 2 अधिकारी तो NOC देने के नाम पर रिश्वत मांगने में पकड़े गए, जबकि किसी भी संस्था का प्रशासक या परिसमापक होना सहकारिता उपायुक्त यानी एम.एल. गजभिए के हाथों में रहता है उन्हीं के आदेश से संस्था के प्रशासक और परिसमापक नियुक्त होते हैं और कभी-कभी प्रशासनिक कारणों हवाला देकर बदल भी दिए जाते हैं। ये अलग बात है कि इन प्रशासनिक कारणों का उल्लेख नोट शीट में होता भी है या नहीं।
क्या ईमानदार अधिकारी की पहचान नहीं कर पा रहे गजभिए
क्या गजभिए ईमानदार अधिकारी की पहचान नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या गजभिए इतने मासूम और पकड़े गए अधिकारी इतने शातिर है कि उनके द्वारा होने वाल काम की रिश्वत वे ले रहे हैं? यदि अधिकारी शातिर है तो वे पकड़े क्यों जा रहे हैं? या फिर गजभिए की भी इस मांग में पूरी हिस्सेदारी होती है? तभी वे इस मामले में अनजान बन रहते हैं। द सूत्र ने इस मामले में उनसे बात करने की कई बार कोशिश की, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया।
अभी तक गजभिए के कार्यकाल में ये अधिकारी पकड़े गए
संतोष जोशी
सहकारिता निरीक्षक 24 सितंबर 2021 को 10 हजार रुपए की रिश्वत लेते सहकारिता विभाग के दफ्तर के बाहर चाय की दुकान पर लोकायुक्त द्वारा पकड़े गए। शुभ क्रेडिट सोसाइटी से चुनाव कराने के लिए 20 हजार की रिश्वत मांगी थी। 10 हजार लेते पकड़ा गए।
प्रमोद तोमर
सहकारिता निरीक्षक तोमर 26 जुलाई 2021 को 10 हजार की रिश्वत लेते पकड़ाए। 5 हजार पहले फरियादी से ले चुके थे, इन्होंने तिलकनगर सोसाइटी की शिकायत की जांच के नाम पर ये रिश्वत मांगी थी। दफ्तर में ही पकड़े गए।
एमएम श्रीवास्तव
सहकारिता निरीक्षक श्रीवास्तव को फरियादी ने ट्रैप किया और आडियो रिकॉर्ड कर 27 मार्च 2023 को लोकायुक्त को दिया। वो ग्रीन पार्क सोसाइटी की जमीन की NOC देने के नाम पर ढाई लाख रुपए मांग रहे थे, हालांकि वे रंगे हाथ पकड़ाने से बच गए।
प्रवीण जैन
वरिष्ठ निरीक्षक सहकारिता जैन 6 सितंबर 2023 को ही 50 हजार की रिश्वत लेते पकड़े गए। ये रिश्वत उन्होंने विश्वास सोसाइटी में प्लॉट की NOC देने नाम पर मांगी थी, मांग डेढ़ लाख की थी, जो 1.15 लाख में सैटल हुई और पहली किश्त 50 हजार लेते पकड़े गए। साफ कहा कि रिश्वत में 1.15 लाख से कम तो लेता ही नहीं हूं।
सहकारिता में इस तरह इन कामों के लिए होता है खेल
प्लॉट की NOC देने के नाम पर डेढ़ लाख रुपए फिक्स है, इससे कम में निरीक्षक मानते ही नहीं है, क्योंकि एक बड़ा हिस्सा रिश्वत की कड़ी में आगे बढ़ता है।
सहकारिता और भाग में संस्था के प्रभार देने और एक निरीक्षक की जगह दूसरे को प्रभार देने का भी खेल विभाग में चलता है और इसके लिए विभाग में ही राशि की बंदरबाट होती है, प्रभार लेने के लिए अधिकारी राशि का लेन-देन करते हैं।
संस्थाओं के चुनाव कराने के नाम पर भी मोटी राशि मांगी जाती है, क्योंकि जिसे संस्था में पद पर आना है, वे पूरा खेल जमाता है। इससे उसके हाथ में संस्था के काम आ जाते हैं।
संस्था के सदस्यों की वरीयता सूची में हेरफेर का काम भी जोरों पर चलता है, जिस पर मुहर तो सहकारिता विभाग लगाता है। जो सदस्य वरीयता में आगे उसे ही प्लॉट मिलता है, तो ऐसे में ये लंबा खेल होता है।
संस्थाओं को जमीन की खरीदी-बिक्री की छूट देना, इसमें भी लंबा खेल चलता है। एक समय में भूमाफिया दीपक मद्दा, सुरेंद्र संघवी इन सभी ने इसमें लंबा खेल किया। भूमाफिया बॉबी छाबड़ा के साथ भी विभाग की लंबी मिलीभगत रही, जिसे लेकर भूमाफिया अभियान के दौरान खुले तौर पर विभाग के खिलाफ आरोप लगाए गए।
प्रतिवर्ष संस्था के हो रहे ऑडिट रिपोर्ट को पास करने में बहुत से नियमों की अनदेखी करते हुए भ्रष्टाचार होता है और ऑडिट नोट पास किए जाते हैं।